Duniya ki reet - रीत समय की




Duniya ki reet


Kaisi hai yeh duniya.. aage chalne he nahi deti..
Beez toh bo deti hai.. par usey badhne he nahi deti..
Sochta hoon main kabhi kabhi..
Khud kehte hai mehnat karne ko..
Fir jab raat-din ek kar dete..
Vo kehte,”beta aap rehne do” !

Duniya ki iss banavati dorh me..
Iss kadar mai peeche reh gaya..
Khud ki haar toh jheli maine..
Logo ke taane bhi seh gaya..

Yaad aate hai bachpan ke din.. bin swarth jab zindagi jeetey the..
Haar-jeet se badhkar hum.. bas hasne ko khela karte the..
Aaj koi yaad bhi bachpan ki.. saath nahi hai deti..
Kaisi hai yeh duniya.. aage chalne he nahi deti..
Beez toh bo deti hai.. par usey badhne he nahi deti..
Areh kaisi hai yeh duniya..

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रीत समय की


मैं था तो नही उस समय में..
पर सुना बहुत कुछ है...
देखा तो नही कुछ आँखो से..
पर पढ़ा बहुत कुछ है..

कहते थे घर छोटे थे.. पर दिल बहुत बड़े थे..
ज़रूरत जब पड़ी साथ की.. इक-दूजे संग सब खड़े थे..
अब घर तो बड़े हो गये.. पर दिल क्यूँ छोटा रह गया..?
सपनो की इस दौड़ मे.. क्यूँ कोई अकेला पीछे रह गया..
पहले जैसा कुछ नही.. बदला बहुत कुछ है..
मैं था तो नही उस समय में..
पर सुना बहुत कुछ है...
देखा तो नही कुछ आखों से..
पर पढ़ा बहुत कुछ है..

कहते थे सब अपने थे.. त्योहार पर मेला लगता था..
मोबाइल नही होते थे तब पर.. न्योता सब को मिलता था..
अब अपना अपना ना रहा.. परायो से तो रिश्ता क्या रहा..
सहूलते इतनी मिल गयी अब..
पर अपनीमैंमे ही मैं पिसता रहा..
रिश्ता बनता नही यहा.. बिखरता बहुत कुछ है..
मैं था तो नही उस समय में..
पर सुना बहुत कुछ है...
देखा तो नही कुछ आखों से..
पर पढ़ा बहुत कुछ है..

कहते थे बड़े-बुजर्गो को.. आदर-सम्मान मिलता था..
माँ-बाप को भगवान से बढ़कर मान ना..
संस्कृति मे अपनी दिखता था..
अब भगवान तो भूला.. माँ-बाप भी भूले..
क्यूँ हम छोटे-बड़े का.. फ़र्क भी है भूले..
भूले मानवता.. सभ्याचार भी भूले..
संस्कृति की हर इक याद भी भूले..
यहा मिलता नही कुछ भी.. पर बिकता बहुत कुछ है...
मैं था तो नही उस समय में..
पर सुना बहुत कुछ है...
देखा तो नही कुछ आखों से..
पर पढ़ा बहुत कुछ है..



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