लाल नीली बत्ती
लाल नीली बत्ती
भीड़ बहुत थी,
और लंबी कतार थी..
उस जाम में देखा,
कुछ मची हाहाकार थी..
वो चिल्ला रहा था,
गला रूंधा हुआ सा था..
उसकी आवाज़ से हर शख़्स,
वाकिफ़ भी था..
हर किसी को जल्दी थी,
अपनी मंज़िल को पाने की,
दफ़्तर से निकले जो थे...
हर किसी को निकलना था,
आगे इक दूजे से,
गर्मी में रुके जो थे...
पर उसकी मंज़िल कुछ और थी,
वो अब भी चिल्ला रहा था,
उसे रास्ता तलाशना था..
रफ़्तार की पाबंदी ना थी उसे,
हर क़ानून तोड़ने की,
इजाज़त भी थी उसे..
पर फिर भी, बेबस सा,
फँसा था उस भीड़ में..
खुल जाएगा ये रास्ता,
बस इतनी सी उम्मीद में..
निगाहें ज़मीं थी, रंगीन बत्तियों पें..
वो अकेला लाल नीला था,
पीली बत्तियों में..
कुछ चाहतें थे, मदद करना,
पर मजबूर थे,
शायद जल्दी जल्दी में वो सब,
हुए इंसानियत से दूर थे..
खुला जाम, जान आई,
राह मिलते ही, साँस आई..
वो चला, दौड़ा, भागा,
अपनी मंज़िल की और,
फिर किसी जाम में फ़सने,
फिर किसी बत्तियों में उलझने,
जिन पर चलता नहीं उसका कोई ज़ोर..
फिर आया ख़्याल,
वो चला, दौड़ा, भागा,
अपनी मंज़िल की और,
फिर किसी जाम में फ़सने,
फिर किसी बत्तियों में उलझने,
जिन पर चलता नहीं उसका कोई ज़ोर..
फिर आया ख़्याल,
कभी हम भी होंगे,
उस लाल नीली बत्ती तले..
इस आस में की कब,
अस्पताल मिले..
तब सोचेगे आख़िर,
जल्दी किसे थी, और इंतजार किसका ख़त्म हुआ...
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