चाय - एक अल्फ़ाज़
वो सिर्फ़ अल्फ़ाज़ नही, एक एहसास हैं,
सिर्फ़ नाम नही, ज़ज्बात हैं..
उसके बिना सूखी हर बरसात हैं,
वो मेरे हर ग़म, हर खुशी,
मेरी हर सुबह, हर रात,
मेरी हर जीत, हर हार का साथ हैं..
सांवला सा रंग उसका,
पर स्वाद का कोई मेल नही..
नुक्कड़ पे मिले, ठेलो पे मिले,
या मिले कीमती बाज़ारो में,
ये चाय हैं मेरे दोस्त,
इसमे अमीरी ग़रीबी का कोई खेल नही..
मसालेदार हो, या अदरक वाली,
मुंबई की कटिंग, या इलायची वाली..
तुलसी चाय, या असम का प्यार,
चाय है एक, पर नाम हज़ार..
चाय बिना पकौड़े अधूरे,
बरसाती शाम में..
कितने ही मौसम छिपे,
एक छोटे से नाम में..
हम इश्क़ मेन डूबे चाय के,
हमसे बेवफ़ाई ना हो पाएगी ..
कोई पूछे इतनी गर्मी में भी,
चाय को मना कतई ना हो पाएगी..
चाय की तलब तुम क्या जानो,
मयखानो वालो..
तुम्हारा नशा चन्द पलो का,
नींद खुलते ही उतर जाता..
और हमें आँखें खोलते ही,
पहला ख्याल ही चाय का आता..
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