बारिश सी लगती हैं


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शोर सुना तुमने ? 
हवाओं का, उन बादलो का, 
कड़कती हुई उन बिजलियों का.. 
उस शोर के जैसे ही वो,  
मेरे शांत मन में, कभी थमती हैं, 
कभी बरसती हैं.. 
वो मुझे, बारिश सी लगती हैं.. 


तूफान से पहले की खामोशी, 
उसके आने की दस्तक देती हैं.. 
ठंडी हवा के झोंके जैसे, 
खिड़की पर धमकती हैं.. 
गिरती पहली बूँद जब ज़मीन पर, 
दिल पे सरकती हैं.. 
वो मुझे, बारिश सी लगती हैं.. 

जैसे जैसे वो तेज़ होती, 
बिजलियों की गरेज होती, 
बादलो का भी मेल होता, 
सतरंगा फिर खेल होता, 
अपनी हे अलग पहचान होती, 
दुनिया जब हैरान होती, 
कुदरत का फिर नज़ारा होता, 
मानो कोई इशारा होता.. 

फिर थक जाती जब बरस बरस के, 
थोड़ी मधम होने लगती हैं.. 
धीरे धीरे, वो फिर से अपने, 
आँचल में छिपने लगती हैं.. 
छोड़ जाती अपने पीछे जो, 
उस खुश्बू सी मीठी लगती हैं.. 
वो मुझे, बारिश सी लगती हैं.. 

इंतजार रहता हैं उसके आने का, 
एक बार फिर से, दिल को छू जाने का.. 
जी भर के, उन बूँदो में रोने का, 
उसका होकर, उसी में खोने का.. 
उम्मीद में जैसे निगाहें लगाए, 
पापीहें की जान निकलती हैं.. 
वो मुझे, बारिश सी लगती हैं.. 

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