लाल नीली बत्ती
लाल नीली बत्ती भीड़ बहुत थी , और लंबी कतार थी .. उस जाम में देखा , कुछ मची हाहाकार थी .. वो चिल्ला रहा था , गला रूंधा हुआ सा था .. उसकी आवाज़ से हर शख़्स , वाकिफ़ भी था .. हर किसी को जल्दी थी , अपनी मंज़िल को पाने की , दफ़्तर से निकले जो थे ... हर किसी को निकलना था , आगे इक दूजे से , गर्मी में रुके जो थे ... पर उसकी मंज़िल कुछ और थी , वो अब भी चिल्ला रहा था , उसे रास्ता तलाशना था .. रफ़्तार की पाबंदी ना थी उसे , हर क़ानून तोड़ने की , इजाज़त भी थी उसे .. पर फिर भी , बेबस सा , फँसा था उस भीड़ में .. खुल जाएगा ये रास्ता , बस इतनी सी उम्मीद में .. निगाहें ज़मीं थी , रंगीन बत्तियों पें .. वो अकेला लाल नीला था , पीली बत्तियों में .. कुछ चाहतें थे , मदद करना , पर मजबूर थे , शायद जल्दी जल्दी में वो सब , हुए इंसानियत से दूर थे .. खुला जाम