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चाय - एक अल्फ़ाज़

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वो सिर्फ़ अल्फ़ाज़ नही , एक एहसास हैं ,   सिर्फ़ नाम नही , ज़ज्बात हैं ..   उसके बिना सूखी हर बरसात हैं ,   वो मेरे हर ग़म , हर खुशी ,   मेरी हर सुबह , हर रात ,   मेरी हर जीत , हर हार का साथ हैं ..   सांवला सा रंग उसका ,   पर स्वाद का कोई मेल नही ..   नुक्कड़ पे मिले , ठेलो पे मिले ,   या मिले कीमती बाज़ारो में ,   ये चाय हैं मेरे दोस्त ,   इसमे अमीरी ग़रीबी का कोई खेल नही ..   मसालेदार हो , या अदरक वाली ,   मुंबई की कटिंग , या इलायची वाली ..   तुलसी चाय , या असम का प्यार ,   चाय है एक , पर नाम हज़ार ..   चाय बिना पकौड़े अधूरे ,   बरसाती शाम में ..   कितने ही मौसम छिपे ,   एक छोटे से नाम में ..   हम इश्क़ मेन डूबे चाय के ,   हमसे बेवफ़ाई ना हो पाएगी ..   कोई पूछे इतनी गर्मी में भी ,   चाय को मना कतई ना हो पाएगी ..   चाय की तलब तुम क्या जानो ,   मयखानो वालो ..   तुम्हारा नशा चन्द पलो का ,   नीं

घर में

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घर में ,   बस हम दोनो ही रहते थे ,   एक वो और एक मैं ,   प्यार बहुत था ,   और तकरार भी ,   और थोड़ी बहुत मार भी ..   उसका मेरे सिवा ना कोई था ,   मेरा बस ,   एक वो ही तो सहारा था ..   शाम ढले वो आता ,   थका हारा बेचारा था ..   मैं प्यार से जाता पास ,   बस बगल मे जा बैठता ..   वो सिर पे हाथ फेर के ,   फिर कानो को था   खींचता ..    बिन बोले वो समझ था जाता ,   कैसे बताऊं ,   क्यूँ मैं उसको इतना चाहता ..   बचपन से ,   उसकी गोद मे खेला ,   हर नखरे को मेरे उसने ,   हँस - हँस के है झेला ..   आज भी उसकी गोद ,   मेरी पसंदीदा जगह हैं ..   मेरे हँसने रोने की ,   बस वो ही एक वजह हैं ..   वो खाना खाए , तो मैं खाऊँ ..   वो रोए तो मैं रोयूँ ..   कभी मैं तकिया , तो कभी वो ,   बिन उसके कैसे सोयूँ ..   यूँ ही दिन गुज़र जाता ,   इंतजार में ..   रात में फिर बातें होती ,   थोड़े थोड़े   अंतराल   में ..   हम

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