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बारिश सी लगती हैं

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शोर सुना तुमने ?   हवाओं का , उन बादलो का ,   कड़कती हुई उन बिजलियों का ..  उस शोर के जैसे ही वो ,   मेरे शांत मन में , कभी थमती हैं ,   कभी बरसती हैं ..   वो मुझे , बारिश सी लगती हैं ..   तूफान से पहले की खामोशी ,   उसके आने की दस्तक देती हैं ..   ठंडी हवा के झोंके जैसे ,   खिड़की पर आ धमकती हैं ..   गिरती पहली बूँद जब ज़मीन पर ,   दिल पे आ सरकती हैं ..   वो मुझे , बारिश सी लगती हैं ..   जैसे जैसे वो तेज़ होती ,   बिजलियों की गरेज होती ,   बादलो का भी मेल होता ,   सतरंगा फिर खेल होता ,   अपनी हे अलग पहचान होती ,   दुनिया जब हैरान होती ,   कुदरत का फिर नज़ारा होता ,   मानो कोई इशारा होता ..   फिर थक जाती जब बरस बरस के ,   थोड़ी मधम होने लगती हैं ..   धीरे धीरे , वो फिर से अपने ,   आँचल में छिपने लगती हैं ..   छोड़ जाती अपने पीछे जो ,   उस खुश्बू सी मीठी लगती हैं ..   वो मुझे , बारिश सी लगती हैं

Maa

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माँ कभी सुना हैं , एक अल्फ़ाज़ ,   जिसमे पूरी दुनिया समाती हैं ..   जिसे पुकारते ही , कितनी सुकून भरी ,   मुस्कुराहट आती हैं ..   घर आते ही जिसे खोजता हूँ ,   ना दिखे तो थोड़ा डरता हूँ ..   फिर पूछता हूँ , माँ कब आएगी ..   भले कोई काम ना हो ,   बस माँ का दिखना ज़रूरी हैं ..   उसके होने से हर खुशी ,   ना होने से ज़िंदगी अधूरी हैं ..   ना जाने कितने शब्दो को ,   नया आयाम दिया हैं एक अल्फ़ाज़ ने ..   सुकून , राहत , ज़िंदगी , भगवान ,   कितने ही रूप छिपे हैं माँ में ..   माँ , वो परछाई जिसने हर दफ़ा ,   धूप से बचाया हैं ..   माँ , वो रूह जिसने हर दफ़ा ,   गिरने पे उठाया हैं ..   माँ , वो पहरा जिसने हर दफ़ा ,   मुश्किलो से बचाया है ..   माँ , वो रात जिसने हर दफ़ा ,   ख्वाब देखना सिखाया हैं ..   माँ , वो किताब जिसने हर दफ़ा ,   सही ग़लत सिखाया हैं ..   कितना लिखूं जो ब्यान करे ,   जो मेरी माँ ने मुझे बनाया हैं .

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